चोटी की पकड़–2

बुआ विधवा हैं, मौसी भी विधवा। 


बुआ की उम्र पच्चीस होगी। लंबी सुतारवाली बँधी पुष्ट देह।

 सुढर गला, भरा उर। कुछ लंबे माँसल चेहरे पर छोटी-छोटी आँखें; पैनी निगाह। छोटी नाक के बीचो-बीच कटा दाग। 

एक गाल पर कई दाँत बैठे हुए। चढ़ती जवानी में किसी बलात्कारी ने बात न मानने पर यह सूरत बनायी, फिर गांव छोड़कर भग खड़ा हुआ।

 इज्जत की बात, ज्यादा फैलाव न होने दिया गया।

बुआ की देह जितनी सुंदर है, चेहरा उतना ही भयंकर। 

वह जागीर दार खानदान की लड़की नहीं, मान्य की मान्य हैं। बुआ के भतीजे का भाग। गरीब थे। 

जागीरदार को लड़की ब्याहनी थी। लड़का ढूँढा। वह पसंद आए। बुला लिया। बच्चे थे। पढ़ाया-लिखाया। 

उठना-बैठना, बातचीत, रईसी के अदब और करीने सिखलाए।

 फिर निबाह के लिए एक अच्छी खासी जमींदारी लड़की के नाम खरीदकर उनके साथ ब्याह कर दिया। 

ब्याह पर दामाद साहब का लंबा कुनबा आ धमका। बुआ इसी में हैं बहुत निकट की। 

जब भी बंगाल के प्रतिष्ठित प्रायः सभी ब्राह्मण और कायस्थ पहले के युक्तप्रांत के रहने वाले हैं, पर वे बंगाली हो गए हैं; यह जागीरदार-परिवार आदि से युक्त प्रांतीयता की रक्षा कर रहा है।

आने पर, समधिन-साहिबा यानी राजकुमारी की माँ रानी साहिबा ने बुआ को बुलाया; अपनी सोलह कहारोंवाली गद्दीदार पालकी भेज दी। साथ वर्दी पहने चार सशस्त्र सिपाही। 

खिड़की के कब्जे पकड़ने के लिए दोनों बगल दो नौकरानियाँ। विधवा बुआ विधवा के श्वेत स्वच्छ वस्त्र से गईं।

 रानी साहिबा नयी अट्टालिका में रहती थीं। बड़े तख्त पर ऊँची-ऊँची गद्दियाँ बिछी थीं। ऊपर स्वच्छ चादर, कितने ही तकिए लगे हुए। सामने ऊँची चौकी पर पीकदान रखा हुआ। 

बगल में पानदान। विशाल कक्ष। साफ सुथरा। संगमरमर का फर्श। दीवारों और छत पर अति-सुंदर चित्रकारी। 

बीच में श्वेत प्रस्तर की मेज पर चीनी फूलदानी में सुगंधित पुष्प। हाथ से खींचे जाने वाले पंखे की रस्सी, दीवार में किए छेद से बाहर निकालकर ह्वील पर चढ़ायी हुई। 

तीन घंटे दिन और तीन घंटे रात की ड्यूटी पर चार पंखा-बेयरर लगे हुए। पंखा चल रहा है। तख्त की बगल में एक गद्दीदार चौकी रखी हुई है बुआ के बैठने के लिए।

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